चाँदनी रातों में अक्सर बोलते हैं

चाँदनी रातों में अक्सर बोलते हैं ख़ुशनुमा ख़ामोश मंज़र बोलते हैं   बोलते हैं, जब भी रहबर बोलते हैं फूल से लहजे में पत्थर बोलते हैं   मैं बहुत ख़ामोश होता हूँ तो मुझसे घर के सन्नाटे लिपटकर बोलते हैं   जब ज़बां पर कैंचियाँ लटकी हुई हों धार पा जाते हैं अक्षर, बोलते हैं … Continue reading चाँदनी रातों में अक्सर बोलते हैं